UP में भाजपा ने रखा मिशन 75 का लक्ष्य, जानिए कैसे पार्टी के इस दांव से मिलेगी दिल्ली की गद्दी
भाजपा के लिए गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। ऐसे में यूपी में जिस पार्टी की जीत होगी, वह दिल्ली की गद्दी पर राज करेगा। लेकिन विपक्ष के लिए हमेशा यह कड़ी कमजोर साबित होती रही है।
भाजपा के लिए गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। ऐसे में यूपी में जिस पार्टी की जीत होगी, वह दिल्ली की गद्दी पर राज करेगा। लेकिन विपक्ष के लिए उत्तर प्रदेश सबसे कमजोर कड़ी है। भाजपा के विजय अभियान को रोकने में विपक्ष की तरफ से किए जा रहे सारे प्रयोग फेल हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर पिछले यूपी में सपा और बसपा का गठबंधन भी भाजपा के आगे नहीं टिक सका। अब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस इंडिया गठबंधन के बैनर तले मिल कर चुनाव लड़ना चाहती है। वैसे तो यह दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़ती नजर आती हैं।
वहीं सपा पिछड़े, मुस्लित और दलित के वोटों के दम पर ताल ठोंक रही है। तो वहीं जातीय जनगणना के बहाने इसी सामाजिक समीकरण के भरोसे कांग्रेस पार्टी भी आस लगाए बैठी है। वहीं बसपा अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर रही है। राज्य में बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत सोशल इंजीनियरिंग है। वहीं बीजेपी हर तरह का चुनाव गैर यादव पिछड़े, गैर जाटव दलित और फॉरवर्ड कास्ट के बूते जीतती आई है। भाजपा के हिंदुत्व और जातीय समीकरण का काट विपक्ष के पास नहीं है।
वहीं पार्टी ने इसी सप्ताह में सभी लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए प्रभारी भी नियुक्त कर सकती है। सभी अस्सी लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पहले ही विस्तारक भेज चुका है। बता दें कि पिछली बार आम चुनावों में भाजपा को 62 और उसकी सहयोगी पार्टी रही अपना दल को 2 सीटें हासिल हुई थीं। वहीं इस बार बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने 75 प्लस का लक्ष्य रखा है।
भले ही कांग्रेस और सपा के बीच अभी भी किच-किच जारी है। लेकिन इन दोनों पार्टियों का एक ही एजेंडा है। अखिलेश और राहुल दोनों ही जातिगत जनगणना पर बैटिंग कर रहे हैं। वहीं भाजपा इस मुद्दे पर पूरी तरह से खामोश है। हांलाकि पार्टी का पूरा फोकस अपने सोशल इंजीनियरिंग को बचाए रखने पर है। पार्टी की तरफ से जाति देखकर जिला प्रभारियों के नाम भी तय की है। जिस जिले में जाति की जरूरत के मुताबिक उसी जाति के नेता को जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं संगठन में बेहतर काम करने वालों को भी कुछ जगहों पर मौका दिया गया है। ऐसे में पार्टी किसी की कीमत पर सोशल इंजीनियरिंग पर अपनी मजबूत पकड़ को कमजोर नहीं करना चाहती है।