हिंसा के बीच भाजपा ने खुद को किया बुलंद पर मुस्लिम मतदाताओं को साधने की जरुरत
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़कर, उनका विश्वास जीतने का प्रयास किया, जिसका परिणाम चुनाव के नतीजों में साफ देखने को मिला। बीजेपी ने चुनाव से पहले कई टीमों का गठन किया था, जो राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर लोगों को केंद्र की योजनाओं के बारे में जानकारी दे रही थी।
पश्चिम बंगाल में राजनीति के नाम पर टकराव और हिंसा, कोई नई बात नहीं है। कोई छोटी रैली हो, बैठकें हों या विशाल मार्च, किसी भी प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क सकती हैं। राज्य की बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ एक-दूसरे पर हिंसा के आरोप लगाती रही हैं। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान, बीजेपी रोजाना हथियारों के साथ रैलियां करती है और इसके कार्यकर्ता अपने साथी कार्यकर्ताओं पर हमले करते हैं। वहीं, भगवा पार्टी इसका आरोप सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर लगाती है। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता एक-दूसरे पर हिंसक हमले करते रहे हैं और यहाँ तक की इन हमलों में कई कार्यकर्ताओं की मौत की खबरें भी सामने आती हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी जिस तरह उभर कर सामने आई है, वह तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी हैं। जहाँ 2014 में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं, वहीं 2019 में 18 सीटें जीतकर बीजेपी, पश्चिम बंगाल में भी अपनी पकड़ बनाने कामयाब रही। बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़कर, उनका विश्वास जीतने का प्रयास किया, जिसका परिणाम चुनाव के नतीजों में साफ देखने को मिला। बीजेपी ने चुनाव से पहले कई टीमों का गठन किया था, जो राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर लोगों को केंद्र की योजनाओं के जरिए यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि मोदी सरकार आम जनता के विकास के लिए तत्पर रहती है और ममता बनर्जी, केंद्र सरकार की योजनाओं को लोगों तक पहुँचने नहीं दे रही है।
इसे भी पढ़ें: क्या असम में बीजेपी को मात दे पाएगा कांग्रेस का महागठबंधन?
बंगाल में करीब तीन दशक तक कांग्रेस और करीब साढ़े तीन दशक तक वामपंथी दल सत्ता में रही। लेकिन प्रदेश के बदले सियासी हालात में लेफ्ट और कांग्रेस के नेताओं ने बीजेपी और टीएमसी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। खबरों के मुताबिक इस माह के अंत तक सीटों का बंटवारा हो जाएगा। पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीट हैं। बातचीत के दौरान कांग्रेस ने 130 सीटों की मांग की है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और लेफ्ट ने भी गठबंधन किया था। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 92 और लेफ्ट 202 सीटों पर चुनाव लड़े थे, लेकिन दोनों ही पार्टियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था और फिर से ममता बनर्जी के नेतृत्व में सरकार बनी थी।
पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों और मुस्लिमों की संख्या ज़्यादा है। यही कारण है कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी मुस्लिमों को खुश कर, मुस्लिम वोट साधने की कोशिश में रहती हैं। वहीं, अन्य राज्यों की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी अपना हिंदुत्व का अजेंडा लेकर चलती है। वहीं, फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक नया राजनीतिक संगठन ‘इंडियन सेकुलर फ्रंट’ (आईएसएफ) बनाने की घोषणा की है। सिद्दीकी ने कहा कि आईएसएफ राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ सकता है। वहीं, वाम-कांग्रेस गठबंधन के साथ आईएफएस के गठबंधन की भी संभावना है। ऐसे में, तृणमूल कांग्रेस को आईएसएफ से खतरा साबित हो सकता है क्योंकि टीएमसी को मिलने वाले मुस्लिम वोट आईएफएस की झोली में पड़ सकते हैं।