Right To Health Bill: सीएम गहलोत ने प्रदेश की जनता को दी बड़ी सौगात, आगामी चुनाव में बनेगा 'नई लहर' का कारण

राजस्थान में साल 2023 के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों को ध्यान में रखते हुए सभी पार्टियों ने सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। वहीं तमाम विरोधों के बीच गहलोत सरकार ने प्रदेश की जनता को बड़ी सौगात दी है।
इस साल के अंत में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस- बीजेपी सहित सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है। इसी बीच सीएम अशोक गहलोत ने राजस्थान की जनता को बड़ी सौगात दी है। भाजपा के तमाम विरोधों के बाद राजस्थान विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल बीते मंगलवार को पास हो गया। बता दें कि अशोक गहलोत सरकार का यह बिल महत्वाकांक्षी बिल है। इस बिल के तहत राज्य के किसी भी मरीज के पास यदि इलाज के पैसे नहीं होते हैं तो भी उसके इलाज से इंकार नहीं किया जाएगा ।राइट टू हेल्थ बिल पारित करने प्रदेश राजस्थान भारत का पहला राज्य बन गया है।
कांग्रेस का नया दांव
आपको बता दें कि सरकारी या प्राइवेट हॉस्पिटल में राज्य के किसी भी निवासी को इलाज के लिए इंकार नहीं किया जाएगा। हालांकि इस कानून को लेकर निजी डॉक्टर राज्य सरकार से उलझे हुए हैं। निजी डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल से उनके कामकाज और नौकरशाही में दखल पड़ेगा। ऐसे में सवाल यह भी है कि तमाम मुश्किलों के बीच पास किए गए इस बिल का फायदा क्या कांग्रेस को आगामी चुनाव में मिल सकता है। यह गहलोत सरकार का यह दांव राजस्थान में नई लहर की वजह बनेगा।
इस बिल का क्यों हो रहा विरोध
राइट टू हेल्थ बिल के मुताबिक राज्य का कोई भी निवासी इमरजेंसी की स्थिति में किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में अपना फ्री इलाज करवा सकते हैं। प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर इस बिल का विरोध कर रहे हैं। डॉक्टर का कहना है कि कब और कैसे इमरजेंसी तय की जाएगी इसका कोई दायरा तय नहीं किया गया है। ऐसे में कोई भी मरीज इमरजेंसी का बहाना बनाकर फ्री इलाज करवा सकते हैं।
एंबुलेंस का खर्चा
इस बिल के अनुसार, अगर हॉस्पिटल में कोई मरीज किसी गंभीर बीमारी का इलाज करवा रहा है। अगर उस मरीज को इलाज के लिए दूसरे अस्पताल रेफर करना है तो ऐसी स्थिति में एंबुलेंस की व्यवस्था होना अनिवार्य है। इस पर भी डॉक्टरों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसे स्थिति में एंबुलेंस का खर्चा कौन उठाएगा। वहीं निजी हॉस्पिटल एंबुलेंस का खर्च कितना उठा पाएंगे।
वाहवाही बटोरने में जुटी सरकार
इस सरकारी योजना के मुताबिक निजी अस्पतालों को भी सभी बिमारियों का इलाज फ्री में करना है। ऐसे में डॉक्टरों ने सरकार के इस बिल का विरोध जताते हुए कहा है कि आगामी चुनाव को देखते हुए सरकार प्राइवेट अस्पताल पर भी अपनी सरकारी योजनाएं थोप रही है।
इलाज से इंकार पर
राज्य सरकार की इस योजना को सभी प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों को मानना होगा। यदि किसी भी हॉस्पिटल में राइट टू हेल्थ का उल्लंघन किया जाता है। यानि की मरीज का इलाज से इंकार किया जाता है तो हॉस्पिटल को 10 से 25 हजार तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। पहली बार इलाज से इंकार पर 10 हजार रूपए जुर्माना, दूसरी बाद इंकार किए जाने पर 25 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य स्तर पर इस बिल की शिकायत सुनने के लिए राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण बनेगा। सरकारी योजना का उल्लंघन करने पर प्राधिकरण के फैसले को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
सत्ता और विपक्ष में जमकर नोकझोंक
सदन में इस बिल पर मुहर लगाने से पहले इसे लेकर सत्ता और विपक्ष में जमकर बहस हुई। स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने इस मामले पर अपना तर्क रखते हुए कहा कि प्रदेश में कई बड़े अस्पताल हैं। जहां पर इलाज के दौरान मौत हो जाने पर पूरा बिल जमा कराए बिना बॉडी नहीं ले जाने दी जाती है। ऐसे में गरीब लाखों रुपए का बिल कहां से चुकाएगा। वहीं भाजपा इस बिल को पास किए जाने का विरोध कर रही थी।
प्रदेश का कांग्रेस में हाल
प्रदेश में गहलोत सरकार आने के बाद राजस्थान में पिछले 4 सालों में कई वजहों के चलते 9 उपचुनाव हुए हैं। इन चुनावों में कांग्रेस को 66% सफलता मिली है। जिसका मतलब यह हुआ कि 9 उपचुनावों के परिणामों में कांग्रेस का पलड़ा ज्यादा भारी रहा है। वहीं भाजपा ने अन्य दलों के उम्मीदवारों का हराया था। उपचुनावों के परिणाम के आधार पर अशोक गहलोत यह दावा करते हैं कि राज्य में कोई सरकार विरोधी लहर नहीं है।
इस बिल से आम जनता को फायदा
नीति आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से प्रदेश की कुल आबादी में से 29.46 फीसदी जनता को गरीबी में गुजर बसर करना पड़ रहा है। इसके साथ ही राज्य के शहरी क्षेत्र में 11.52 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 35.22 प्रतिशत आबादी गरीब है। वहीं इस बिल के पास होने से प्रदेश की 29.46 फीसदी जनता कांग्रेस से खुश होगी। क्योंकि गरीब के पालस महंगे इलाज के लिए पैसे नहीं होंगे। ऐसे में कांग्रेस का यह फैसला गरीब वर्ग के लिए काफी लाभकारी साबित होगा। वहीं इस आबादी का समर्थन आगामी चुनाव में कांग्रेस की ओर जा सकता है। राजस्थान को गरीबी के मामले में 8वां स्थान प्राप्त है।
आगामी चुनाव को साधने की तैयारी
राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं। इस सीटों पर साल 2023 के अंत तक चुनाव होने हैं। प्रदेश में बहुमत का आंकड़ा 101 विधायकों का है। साल 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को करारी शिकस्त दी थी। उस दौरान कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि बीजेपी को 73 सीटों में ही संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस राइट टू हेल्थ बिल के पास करने के साथ ही जनता को यह मैसेज देना चाहती है कि आगामी चुनाव में गहलोत सरकार जनता की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान दे रही है। बता दें कि फरवरी में गहलोत सरकार ने बजट पेश करने के दौरान युवाओं, महिलाओं, किसानों और सरकारी कर्मचारियों के लिए तमाम घोषणाएं की थी। ऐसे में आगामी चुनाव के लिए सभी पार्टियां और संगठन सक्रिय होने लगे हैं।