Bihar Corruption: बिहार में खुले आम चल रहा करप्शन का खेल, राज्य की स्थिति में खास बदलाव नहीं ला पाए CM नीतीश कुमार

LSChunav     Nov 30, 2023
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Bihar Corruption: बिहार में खुले आम चल रहा करप्शन का खेल, राज्य की स्थिति में खास बदलाव नहीं ला पाए CM नीतीश कुमार

बिहार एक ऐसा राज्य है, जो हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। बिहार में अक्सर भष्टाचार का कोई न कोई मामला आए दिन सुर्खियों में रहता है। जमीनी स्तर पर बिहार का सूरतेहाल कमोबेश वैसा ही है, जैसा कभी 90 के दशक में हुआ करता था।

बिहार एक ऐसा राज्य है, जो हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। पिछले कुछ महीनों पहले बिहार में एक ऐसी घटना सामने आई, जिसके बाद राज्य में भ्रष्टाचार को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने जोर पकड़ लिया। दरअसल, सुल्तानगंज और खगड़िया जिले के अगुवानी के बीच बन रहा पुल भरभराकर अचानक से गंगा नहीं में जा गिरा। इस घटना को कई लोगों ने अपने मोबाइल में कैद किया था। यह ऐसा पहला भ्रष्टाचार का किस्सा नहीं है, जो सामने आया है। बल्कि इसस पहले भी ऐसे कई वाकये सामने आ चुके हैं। बता दें कि वह पुल करीब 1700 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा था। 


हांलाकि जब भी कोई इस तरह का मामला सामने आता है, तो सत्ता दल की तरफ से दोषियों को न बख्शने का बयान भी दिया जाता है। लेकिन समय के साथ ही बात भी पुरानी होती जाती है। बता दें कि पिछले तीन दशक में बिहार की राजनीति पर एक नजर डालें, तो यहां पर सिर्फ और सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति हावी रही है। वहीं जमीनी स्तर पर बिहार का सूरतेहाल कमोबेश वैसा ही है, जैसा 90 के दशक में हुआ करता था।


राज्य की राजनीति में 10 मार्च 1990 से एक नए अध्याय की शुरूआत हुई थी। क्योंकि आजादी के बाद से राज्य में ज्यादातर कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन इस दिन से बिहार में लालू प्रसाद यादव की सत्ता शुरू हुई। 10 मार्च 1990 को लालू बिहार के सीएम बने थे। 90 के दशक से लेकर साल 2015 तक यानी की 15 साल तक लालू यादव परिवार और उनकी पार्टी आरजेडी का शासन रहा। लालू यादव के शासन के खत्म होने के बाद नीतीश कुमार का शासन शुरू हुआ। 


साल 2005 में नीतीश कुमार का युग शुरू हुआ, जो अभी तक चलता आ रहा है। बता दें कि नवंबर 2005 से लेकर अगस्त 2022 तक बिहार में नीतीश की सरकार में भाजपा करीब 12 बार सरकार का हिस्सा रही है। लेकिन इन 33 सालों में लालू और नीतीश बिहार की स्थिति में खास बदलाव नहीं कर पाए। आर्थिक मोर्चे से लेकर गरीबी, रोजगार, शिक्षा, मेडिकल फैसिलिटी में कुछ खास परिवर्तन देखने को नहीं मिला। वहीं पिछले साल अगस्त महीने में जब नीतीश कुमार ने भाजपा से पल्ला झाड़ा, तो तेजस्वी यादव के साथ हाथ मिलाकर राज्य में गठबंधन की सरकार बनाई।


तेजस्वी यादव के साथ महागठबंधन की सरकार बनाने के बाद से लगता है नीतीश कुमार का राज्य की शासन व्यवस्था से मोह भंग हो गया है। पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार का पूरा ध्यान बिहार की तस्वीर बदलने पर नहीं, बल्कि साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ देशव्यापी स्तर लामबंदी करने पर ज्यादा है। आपको बता दें कि बिहार अभी भी देश के पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। यह देश का सबसे गरीब राज्य है। नीति आयोग ने 52 फीसदी आबादी को बहुआयामी गरीब माना था।


आज भी बिहार के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मामले में देश से काफी पीछे खड़े नजर आते हैं। नीतीश कुमार के 17 साल के शासन में बिहार में कुछ खास सुधार या परिवर्तन देखने को नहीं मिलता है। फिलहाल ऐसा लगता है कि सीएम राज्य की तस्वीर बदलने पर कम और अपनी सत्ता को बचाए रखने पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। ऐसे में गंगा नदी पर बन रहे पुल के इस तरह से गिरने के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिहार से भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो पाएगा। या अभी भी बिहार की तस्वीर में बदलाव देखने के लिए काफी इंतजार करना होगा।