Assam News: इस राज्य में नहीं चलेगा चार शादियों वाला मुस्लिम लॉ, बहुविवाह रोकने के लिए कानून बनाएगी सरकार

असम सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर जज वाली एक विशेष समिति का गठन किया था। मुस्लिम पुरुषों द्वारा चार महिलाओं से शादी की परंपरा आवश्वयक नहीं है। बता दें कि राज्य सरकार अनुच्छेद 254 के तहत बहुविवाह को रोकने के लिए एक कानून बना सकती है।
बहुविवाह रोकने के लिए असम सरकार एक कानून बनाने की तैयारी में है। इसके लिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर जज वाली एक विशेष समिति का गठन किया था। अब कमेटी ने बीते रविवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। समिति के मुताबिक मुस्लिम पुरुषों द्वारा चार महिलाओं से शादी की परंपरा आवश्वयक नहीं है। रविवार को असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि समिति के सभी सदस्यों की इस रिपोर्ट पर सर्वसम्मत राय है। ऐसे में राज्य के पास बहुविवाह को समाप्त करने लिए कानून बनाए जाने की विधाई क्षमता है। बता दें कि राज्य सरकार अनुच्छेद 254 के तहत कानून बना सकती है।
राष्ट्रपति से लेनी होगी सहमति
फिलहाल राज्य में इस मामले का विरोध किया जा रहा है। क्योंकि शरीयत एक्ट 1937 के तहत मुस्लिम विवाह और तलाक को लेकर पहले से एक कानून बना है। यह एक केंद्रीय कानून है। ऐसे में यदि राज्य में इस मुद्दे पर कानून बनता है कि इसके लिए राज्यपाल से नहीं बल्कि राष्ट्रपति से सहमति लेनी होगी। राज्य सरकार द्वारा गठित की गई समिति में कहा गया कि शादी और तलाक समवर्ती लिस्ट में आते हैं। इसलिए न सिर्फ केंद्र बल्कि राज्य भी इस पर कानून बना सकते हैं।
बहुविवाह पर रोक जरूरी
बता दें कि केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में यह कानून पहले से ही है। इसलिए राज्य द्वारा कानून में बदलाव के लिए केवल राष्ट्रपति ही अनुमति दे सकते हैं। समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में बहुविवाह पर कानून बनाना इसलिए जरूरी हो गया है। क्योंकि यह मुस्लिम महिलाओं को अनुच्छेद 14, 15, 21 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
बहुविवाह अनिवार्य नहीं
राज्य सरकार द्वारा गठित समिति ने कहा कि बहुविवाह की अनुमति मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत है। लेकिन यह जरूरी नहीं है। जरूरी नहीं है कि हर मुस्लिम व्यक्ति चार पत्नियों को रखे। समिति द्वारा कहा गया है कि इस्लाम धर्म के मुताबिक बहुविवाह आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। इसलिए इस प्रथा पर रोक लगाने के लिए कोई भी कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं करेगा।
बता दें कि इससे पहले 1955 के लागू होने के बाद हिंदुओं, बौद्धों और सिखों के बीच बहुविवाह और हिंदू विवाह अधिनियम को समाप्त कर दिया गया। वहीं ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 द्वारा और पारसियों के बीच पारसी विवाह और तलाक अधिनियम और 1936 द्वारा बहुविवाह को समाप्त कर दिया गया। बहुविवाह पर रोक लगाए जाने के बाद भी यह जारी है। मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम 1937 द्वारा आज भी यह प्रथा मुसलमानों में जारी है।