कभी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे नीतीश कुमार, अब न जाने कहां छुपे बैठे हैं

LSChunav     Apr 22, 2019
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कभी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे नीतीश कुमार, अब न जाने कहां छुपे बैठे हैं

लोकसभा चुनावी चर्चाओं, टीवी डिबेट यहां तक की विपक्ष भी नीतिश कुमार को लेकर कोई बयानबाजी नहीं कर रहा हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, नीतीश कुमार ने बिहार का कायापलट किया हैं तो इस बार प्रधानमंत्री की दावेदारी में वो क्यों नहीं हैं आइये जानते है-

देश में नई सरकार चुनने के लिए लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। सभी पार्टियों में घमासान जारी हैं। लगातार जुबानी हथियार से पार्टियों के बीच युद्ध चल रहा है। पार्टियों के कुछ नेताओं ने बयानबाजी के चक्कर में जुबान पर लगी लगाम को भी उखाड़ के फेंक दिया। एक दूसरे पर जमकर बयानबाजी हो रही हैं। 2019 के लोकसभा चुवाव की खास बात यह है कि इस चुनाव में नये चेहरे देखने को मिल रहे हैं। तो दूसरी तरफ 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के दावेदार बिहार के विकास पुरूष नीतिश कुमार इस समय न जाने कहा गायब हैं। लोकसभा चुनावी चर्चाओं, टीवी डिबेट यहां तक की विपक्ष भी नीतिश कुमार को लेकर कोई बयानबाजी नहीं कर रहा हैं।  ऐसा क्यों हो रहा है, नीतीश कुमार ने बिहार का कायापलट किया हैं तो इस बार प्रधानमंत्री की दावेदारी में वो क्यों नहीं हैं आइये जानते है-

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बिहार की राजनीति को समझने वाले बताते हैं की जब 1994 में नीतीश कुमार ने लालू से नाता तोड़ा था तो नीतीश कुमार की छवि एक विद्रोही और प्रगतिशील नेता के रूप में उभरी। बिहार में हुए 2005 के चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए के साथ गठबंधन करके सत्ता में आये। नीतीश कुमार को जनता के दिल से स्वीकार किया। नीतीश कुमार ने बिहार में जातिवादी राजनीति से हट कर विकास पर काम किया, और लगातार बिहार के विकास के लिए काम करते रहें। बिहार में लगातार जीत के बाद नीतीश कुमार 2014 में प्रधानमंत्री की दावेदार थे। लेकिन 2019 में राजनीतिक परिस्थितियां इस कदर बदली की विपक्ष नीतीश कुमार कोई फैक्टर तक मानने को तैयार नहीं है। चुनावी चर्चाओं के भी वो मुख्य विषय नहीं बन पा रहे हैं।

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मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने बीबीसी से बात-चीत में बाताया की नेता हो या आम आदमी दोनो का ही सामाजिक या राजनीतिक जीवन में साख का बहुत बड़ा महत्व है। रामचंद्र पूर्वे ने बताया कि पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी यानी राष्ट्रीय जनता दल और जेडीयू के गठबंधन में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन नीतीश कुमार ने जनता का जनादेश का अपमान किया। उन्होनें लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन तोड़ कर विश्वासघात किया। नीतीश कुमार ने बीजेपी से वापस गठबंधन करके अपनी कुर्सी तो बचा ली लेकिन उनकी साख समाप्त हो गयी। इस वजह से उनकी सामाजिक और राजनीतिक प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है। आज नीतीश कुमार सक्रिय मुख्यमंत्री नहीं बल्कि एक्टिंग सीएम बन गए हैं।"

 

लेकिन आजेडी के इस बयान को जनता दल यूनाइटेड सीरे से नकारती हैं। जेडीयू के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि नीतीश कुमार की साख में कोई कमी नहीं आई हैं। दो दशको में बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की प्रासंगिकता पहले की तुलना में ज्यादा बढ़ी हैं। प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने बिहार में नीतीश सरकार का गुनगान करते हुए बताया कि "मुख्यमंत्री ने शराबबंदी, सात निश्चय, बिहार को विकास की राह पर आगे ले जाने के लिए जनता से आशीर्वाद माँगा था। कभी भी उन्होंने लालू यादव के ग़लत कामों पर पर्दा डालने के लिए जनता से कोई वादा नहीं किया था। कभी भी लालू यादव के पुत्रों के भ्रष्टाचार को नजरअंदाज़ करने के लिए जनादेश नहीं माँगा था।" प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने आरजेडी के आरोपो को खारिजस करते हुए कहा की 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी को संजीवनी नीतीश कुमार ने दी थी वरना वो सत्ता में नहीं आती।