यूपी चुनाव के शतरंज में सब चल रहे हैं अपने दांव, कौन देगा किसको मात?
सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुट चुके हैं। तमाम राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव जीतने और विरोधियों को हराने के लिए माइंड गेम भी शुरू कर दिए हैं। हर राजनीतिक दल इसी तैयारी में जुटा है कि सियासत की सीढ़ी पर कैसे उनकी पार्टी को ऊपर पहुंचाया जा सके और विरोधी दलों को नीचे लाया जा सके।
उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो चुकी है। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुट चुके हैं। तमाम राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव जीतने और विरोधियों को हराने के लिए माइंड गेम भी शुरू कर दिए हैं। हर राजनीतिक दल इसी तैयारी में जुटा है कि सियासत की सीढ़ी पर कैसे उनकी पार्टी को ऊपर पहुंचाया जा सके और विरोधी दलों को नीचे लाया जा सके। इसके लिए हर दल एक से बढ़कर गेम प्लान करने में जुटा है। हर पार्टी दूसरों की कमियां और अपनी खूबियों को बढ़-चढ़कर गिना रही है। कई पार्टियां दूसरी पार्टी या हाशिए पर पड़े नेताओं को अपनी पार्टी ने शामिल कर रही हैं। बड़े-बड़े राजनीतिक दल छोटे दलों का अपनी पार्टी में विलय करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सत्ता के इस खेल में हर दल अपनी अपनी औकात के अनुसार गेम प्लान कर रहा है। बड़े से लेकर छोटे दलों तक, इस माइंड गेम में कोई भी किसी से पीछे नहीं है।
भाजपा, सपा, बसपा और कुछ हद तक कांग्रेस एवं राष्ट्रीय लोक दल भी इस खेल के बड़े खिलाड़ी हैं। जबकि छोटे दलों में अपना एस की अनुप्रिया पटेल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ओमप्रकाश राजभर, निषाद संजय निषाद, प्रगतिशील समाजवादी शिवपाल यादव, ओवैसी ऑल इंडिया मजजिलस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन, भीम आर्मी चंद्रशेखर रावण आदि नेता ताक है कि इसी तरह उनकी का किसी साथ गठबंधन हो जाए। हर कोई अपनी सियासी नैया को किनारे लगाने कोशिश जुटा हुआ है। माना जा रहा बार विधानसभा चुनाव बीच होने संभावना नहीं है, जिसकी वजह से इन चांदी= सकती है।
सियासत के खेल में कभी कोई दल भारी पड़ता नजर आता है तो कभी दूसरा दल। तमाम पार्टियों के लीडरों द्वारा दूसरी किसी पार्टी के नेता को अपने साथ लाने के दौरान उस नेता का बखान ऐसे बढ़-चढ़कर किया जाता है जैसे अब वह पूरी सियासत बिसात ही पलट देगा। इसीलिए अपने गृह क्षेत्र से लगातार तीन बार चुनाव हार चुके कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद जब बीजेपी में शामिल हुए तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अमित शाह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक उनका बखान करने में जुट गए। जितिन प्रसाद का बीजेपी में शामिल होना बीजेपी की मजबूती के लिए अहम बताया गया। माना जा रहा है कि यूपी में ब्राह्मण वोटों पर पकड़ बनाए रखने के लिए यह बीजेपी की रणनीति का एक हिस्सा है। हालांकि यूपी की सियासत पर नजर रखने वालों का मानना है कि जितिन प्रसाद के जरिए भाजपा यूपी में ब्राह्मणों के बीच अपनी सियासी जमीन पुख्ता करने में जुटी है।
करीब 30 साल पहले जब यूपी में कांग्रेस सत्ता में थी तब उसके अधिकांश मुख्यमंत्री और बड़े चेहरे ब्राह्मण ही हुआ करते थे। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी समय-समय पर ब्राह्मणों की भागीदारी को लेकर माइंड गेम खेले हैं। 2007 में बसपा प्रमुख मायावती ने सतीश चंद्र मिश्र के सहारे सत्ता हासिल की थी। हालांकि 2014 में नरेंद्र मोदी के बीजेपी का चेहरा बनने और हिंदुत्व की राजनीति के उभार के बीच ब्राह्मण बीजेपी की ओर वापस लौटे। विपक्ष लगातार योगी आदित्यनाथ का ठाकुरों के प्रति पूर्वाग्रह बता कर ब्राह्मणों के बीच नाराजगी पैदा करने की कोशिश में है। पुलिस हिरासत में ब्राह्मण गैंगस्टर विकास दुबे की हत्या के बाद से विपक्ष ब्राह्मणों को साधने में लगा है। हालांकि, योगी की छवि पर ऐसे आरोप कभी टिक नहीं पाए। यूपी में भाजपा सरकार में 9 मंत्री ब्राह्मण है तो प्रदेश के मुख्य सचिव डीजीपी से लेकर गृह सचिव तक के अहम पदों पर ब्राह्मण बैठे हैं। यूपी उपचुनाव में भी भाजपा ने 7 में से 6 सीटें जीती। जिसमें ब्राह्मणों के प्रभाव वाली देवरिया और बांगरमऊ सीट भी शामिल थी।