यूपी लोकसभा चुनाव में इन जातियों ने भाजपा को नहीं दिया वोट, अवध की हर एक सीट पर समीक्षा हुई

दिव्यांशी भदौरिया     Jun 14, 2024
शेयर करें:   
यूपी लोकसभा चुनाव में इन जातियों ने भाजपा को नहीं दिया वोट, अवध की हर एक सीट पर समीक्षा हुई

उत्तर प्रदेश में बीजेपी का हार पर रार अभी भी देखने को मिल रही है। हारे हुए प्रत्याशी ने विधायकों और कार्यकर्ताओं पर ठीकरा फोड़ा है। यूपी के भाजपा संगठन ने हार की समीक्षा शुरु कर दी है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से करारी हार मिली है, जबकि बीजेपी यूपी में सत्तारुढ़ पार्टी है फिर भी  बुरा हाल हो गया। लोकसभा चुनाव में भाजपा के हारे हुए उम्मीदवारों ने खुद के खिलाफ विरोधी लहर होने के वजह से हुई हार का ठीकरा विधायकों और कार्यकर्ताओं पर फोड़ना शुरु कर दिया है। बता दें, अवध क्षेत्र के हारे हुए प्रत्याशियों को बुलाकर हार के कारणों की जानकारी जुटाई गई है। अधिकांश प्रत्याशियों ने संसदीय क्षेत्र के विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं पर विश्वासघात के साथ ही विपक्ष के आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने के मुद्दे को भी हार की वजह बताई है। 

अवध की एक-एक सीट पर हार की समीक्षा हुई

प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने अवध क्षेत्र की एक-एक सीट पर हार की समीक्षा की है। बता दें कि, बाराबंकी की प्रत्याशी रही राजरानी रावत नहीं पहुंची थी, जबकि श्रावस्ती, सीतापुर, खीरी, लखीमपुर, रायबरेली, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, मोहनलालगंज से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी मुख्यालय पहुंचे थे। इस बार लोकसभा में बीजेपी 29 सीटें हार गई है, इनमें मौजूदा 26 सांसद शमिल हैं। 

सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश मुख्यालय पहुंचे कुछ उम्मीदवारों ने बंद लिफाफे में सबूत समेत हार की वजहें बताई हैं। कई उम्मीदवारों ने यह भी बताया है कि विपक्ष ने फैलाए झूठ कि आरक्षण खत्म करने और सविंधान बदलने के मुद्द से दलित वोटर नाराज थे साथ ही बीजेपी को कोर वोटर रहे गैर यादव पिछड़ी जातियों ने भी भाजपा वोट नहीं दिया। दरअसल, कुर्मी, राजभर, शाक्य, पासी और मौर्या जैसी बीजेपी समर्थक जातियों ने इस चुनाव में वोट नहीं दिया

कार्यकर्ता वोटर नहीं जुटा पाएं

हारे हुए उम्मीदवारों ने अपनी हार की ठीकरा स्थानीय कार्यकर्ताओं पर भी फोड़ा। उन्होंने कहा कि पन्ना प्रमुख और बूथ कमेटियों ने उस तरह से काम नहीं किया। केवल कागजों पर ही कार्यक्रम चलाए गए। जिनके कंधों पर मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने की थी, वह खुद नहीं निकले।