Naxals In Chhattisgarh: नक्सलवाद के दर्द से क्यों नहीं उबर पा रहा छत्तीसगढ़, इतने प्रयासों के बाद सफल नहीं हो रही सरकार
छत्तीसगढ़ अक्सर नक्सली हमले का शिकार होता रहता है। जिसको लेकर प्रदेश में सियासत भी चलती रहती है। वहीं सीएम भूपेश बघेल पर भी इसको लेकर निशाना साधा जाता है। वहीं दूसरी तरफ चुनाव होने के कारण भाजपा ने इस मुद्दे को खूब भुनाया है।
छत्तीसगढ़ अक्सर नक्सली हमले का शिकार होता रहता है। जिसको लेकर प्रदेश में सियासत भी चलती रहती है। वहीं सीएम भूपेश बघेल पर भी इसको लेकर निशाना साधा जाता है। वहीं दूसरी तरफ चुनाव होने के कारण भाजपा ने इस मुद्दे को खूब भुनाया है। वहीं नक्सलियों के पिछले हमलों पर एक नजर डालें, तो चुनावी साल में ही नक्सली एक्टिव होते हैं। चुनाव के समय का फायदा उठाकर यह अपनी अपनी धमक दिखाने की कोशिश करते हैं। नक्सलियों के लिए मार्च से लेकर मई-जून का महीना मुफीद माना जाता है। वहीं गर्मियों के समय में जंगल में दृश्यता बढ़ जाती है।
हांलाकि छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य माना जाता है, जहां पर माओवादियों की भारी संख्या है। यह लोग बड़े हमलों को अंजाम देने की भी क्षमता रखते हैं। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 से 2022 तक वामपंथी-चरमपंथी घटनाओं के कारण 1132 घटनाओं में सुरक्षाबलों के 168 और 335 आम नागरिकों की मौत हुई। इसके अलावा खास बात यह है कि कुल घटनाओं के एक तिहाई से अधिक मामले छत्तीसगढ़ राज्य में दर्ज हुए। इसके साथ ही गंदी राजनीति भी नक्सलियों के सफाए की राह की बड़ी बाधक है। क्योंकि यहां के यहां चुनावी मुद्दों में विकास कार्य कभी शामिल ही नहीं हो पाता है। लेकिन जब भी नक्सली हमला होता है, तो राष्ट्रवाद का मुद्दा फौरन गरमा जाता है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ की भौगोलिक संरचना नक्सिलयों को छिपने, साजिश करने और उसको अंजाम देने के लिहाज से काफी मुफीद है। वहीं अन्य राज्यों ने भी माओवादियों को खदेड़ कर छत्तीसगढ़ पहुंचा दिया। वहीं राज्य में कुछ साल पहले डीआरजी का गठन हुआ। पहाड़ों से घिरे छत्तीसगढ़ में बड़े चुनौतीपूर्ण पठारी इलाके भी हैं। बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जैसे क्षेत्रों में नक्सलियों की तूती बोलती था। जिस कारण इन जगहों पर सुरक्षा बलों के कैंप लगाने पड़े। लेकिन इसके बाद भी सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी चुनौती स्थानीय लोगों के बीच भरोसा पैदा करने की है।
इसके अलावा यह बात पुलिस-प्रशासन को भी पता है कि बच्चे से लेकर जवान और बूढ़े तक, क्या पुरुष और क्या महिलाएं, सभी माओवादियों के लिए काम करती हैं। सुरक्षा बलों की हर गतिविधि से वह नक्सलियों को अवगत कराते हैं। इसके अलावा दक्षिण बस्तर में प्रशासन की सीमित मौजूदगी के चलते भी वहां पर नक्सलियों का प्रभाव बना हुआ है। इसके अलावा इस बात में भी दोराय नहीं कोई ठेकेदार भी उस इलाके में माओवादियों को नजराना दिए बिना तो कोई काम नहीं कर सकता है। इसके साथ ही उन्हीं नक्सलियों के बीच से लोकल नेता आते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ से नक्सलियों के पूरी तरह से सफाए का सपना अभी पूरा होना आसान नहीं जान पड़ता है।