क्या अमरिंदर की नई सियासी पारी कांग्रेस पर पड़ेगी भारी ? भाजपा के साथ गठबंधन की जताई उम्मीद

Priya Mishra     Oct 20, 2021
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क्या अमरिंदर की नई सियासी पारी कांग्रेस पर पड़ेगी भारी ? भाजपा के साथ गठबंधन की जताई उम्मीद

अगर आगामी विधानसभा चुनाव में अमरिंदर अपनी पार्टी के साथ मैदान पर उतरते हैं तो कांग्रेस को नुकासान उठाना पड़ सकता है। हालांकि पंजाब कांग्रेस में मचे घमासान के बीच में ही एक पोस्टर सामने आया था जिसमें 'कैप्टन 2022' लिखा हुआ था। जो अपने आपमें बहुत कुछ कहता है।

पंजाब कांग्रेस में मचे घमासान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान के बाद सियासत एक बार फिर से गर्मा गई। आपको बता दें कि अमरिंदर सिंह जल्द ही अपने राजनीतिक दल के गठन का ऐलान करने वाले हैं। इसी के साथ ही उन्होंने आगामी चुनावों के लिए भाजपा के साथ सीटों को लेकर समझौता होने की उम्मीद जताई है। अमरिंदर सिंह के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ गई।

जानकार बताते हैं कि अगर आगामी विधानसभा चुनाव में अमरिंदर अपनी पार्टी के साथ मैदान पर उतरते हैं तो कांग्रेस को नुकासान उठाना पड़ सकता है। हालांकि पंजाब कांग्रेस में मचे घमासान के बीच में ही एक पोस्टर सामने आया था जिसमें 'कैप्टन 2022' लिखा हुआ था। जो अपने आपमें बहुत कुछ कहता है।

सिद्धू-अमरिंदर विवाद

नवजोत सिंह सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच तनातनी के बीच में कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू की ताजपोशी कर दी थी और उन्हें अमरिंदर के मना करने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद भी विवाद खत्म नहीं हुआ और सिद्धू खेमे के विधायक अमरिंदर के खिलाफ एकजुट होने लगे। जिसके बाद अपमानित होकर अमरिंदर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सिद्धू के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया।

अमरिंदर के इस्तीफे के बाद पंजाब को नया दलित मुख्यमंत्री मिल गया। हालांकि यह वो वक्त था जब अमरिंदर अपने भविष्य की रणनीतियां बना रहे थे। इसी बीच उन्होंने अपना दिल्ली दौरा किया और गृह मंत्री अमित शाह, एनएसए चीफ अजित डोभाल से मुलाकात की और अब उन्होंने आगामी चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन किए जाने की भी उम्मीद जताई है।

हाल ही में अमरिंदर  सिंह ने कहा कि, "अगर किसान आंदोलन का समाधान किसानों के हित में होता है तो 2022 के पंजाब विधानसभा में भाजपा के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर आशान्वित हूं। इसके अलावा समान विचार रखने वाली पार्टियों के साथ समझौते के बारे में भी विचार किया जा रहा है। जैसे अकाली दल से टूट कर अलग हुए समूह, खासतौर से सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा गुट।ढींडसा ने शिअद (लोकतांत्रिक) का गठन किया था जबकि ब्रह्मपुरा ने शिअद (टकसाली) का गठन किया। बाद में दोनों नेताओं ने शिअद (संयुक्त) का गठन किया।