आखिर क्यों स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन से क्यों डर रहा है विपक्ष, क्यो बिहार चुनाव में महागठबंधन डरा हुआ है?

बिहार चुनाव को लेकर राजनैतिक हलचल तेज हो रखी है। चुनाव जीतने के लिए पार्टियां एड़ी-चोटी का बल लगा रही है। इस बीच चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया जारी है। इसको लेकर सभी विपक्ष पार्टी की नींदें उड़ चुकी है। जिसके बाद पूरे देश में चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोला जा रहा है। क्या पूरी बात आइए आपको बताते हैं।
बिहार चुनाव होने वाले हैं जिससे पूरे देश सहित बिहार में काफी उथल-पुथल मची है। दरअसल, चुनाव आयोग बिहार समेत पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन करवाने में जुटा है। हालांकि, विपक्ष आने वाले बिहार चुनाव से पहले इस प्रक्रिया के खिलाफ देश भर में हल्ला मचा रहा है। अब देखा जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक या बिहार में गठबंधन का विरोध राजनीतिक है। 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम के सूक्ष्म विश्लेषण से पता चला रहा है कि विपक्ष को लग रहा है कि इससे उनकी चुनावी जमीन कहीं खिसक न जाएं। विपक्ष का डर सता रहा है कि एसआईआर के कारण बहुत कम मार्जिन से हार या जीत वाली सीटों की फेहरिस्त लंबी हो सकती है, जिससे उसपर फिर से सियासी ग्रहण लग सकता है।
कम मार्जिन वाली सीटों से विपक्ष डरा
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछली बार बिहार में 52 ऐसी सीटें थीं, जिसमें 5,000 से कम वोटों के अंतर से नतीजे तय हुए। वहीं, 35 सीटें तो ऐसी थीं, जहां 1% सेकम या 3,000 से भी कम वोटों के अंतर से हार-जीत फैसला आया था। कुछ ही दिन पहले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा था कि अगर 1% वोटरों का भी नाम कटा तो 35 सीटों के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। फिलहाल इस वजह से विपक्ष डरा हुआ नजर आ रहा है। जिसके कारण चुनाव बहिष्कार की धमकी देने लगा।
पिछले चुनाव में विपक्ष ने अपना दबदबा रखा था
आपको बता दें कि बिहार में विधानसभा चुनाव की 243 सीटें हैं। एडीआर ने बताया कि 3 सीटों पर 200 से कम वोटों के अंतर से फैसला आया था और 4 सीटों पर कम से कम 500 वोटों का अंतर रहा था। वहीं, 4 सीटें ऐसी थी कि जहां पर मर्जिन 1,000, 1,500, 2,000, 3,000 वोटों से कम थी। इसके अलावा , 5 सीटें और थीं, जहां 2,500 से कम मतों के अंतर हार-जीत तय हुई थी।
क्या प्रशांत किशोर फैक्टर भी बड़ी भूमिका है
कहा जा रहा है कि इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर फैक्टर के कारण से भी एनडीए और महागठबंधन को खतरा नजर आ रहा है। यदि एसआईआर नहीं तो प्रशांत किशोर जरुर ही सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों का वोट काटेंगे।