लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश सहित महाराष्ट्र में भी सबसे बड़ा झटका लगा है। इसके पीछे कई कारण है। सबसे बड़ी गलती यह है कि सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना के सात उम्मीदवारों की जीत में भाजपा का हाथ रहा लेकिन भाजपा के उम्मीदवारों को गठबंधन का साथ नहीं मिला। हो सकता है यही स्थिति अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी बन सकती है। इससे यह चर्चा बढ़ गई है कि भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी के दो फाड़ कर जो जाल बिछाया था उसमें खुद उलझ गई है, जिससे विधानसभा की राह भी कठिन हो चुकी है।
इस लोकसभा चुनाव में मराठा आरक्षण , जातीय ध्रुवीकरण, संविधान बदलने का प्रचार और लोकल समीकरण बीजेपी के खिलाफ रहे हैं। बताया जा रहा है कि एकनाथ शिंदे के साथ आने से सत्ता मे सुख तो मिला, लेकिन इसे भाजपा को डबल झटका लगा है।
महा विकास अघाड़ी को मिला फायदा
ठाणे, कल्याण और उत्तर पश्चिम मुंबई से लेकर इंचलकरंजी, बुलढाणा, मावल, संभाजीनगर (औरंगाबाद) में जहां भाजपा के विधायक थे वहां से अधिक लीड मिलने से शिवसेना की जीत आसान हो गई, लेकिन बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए ऐसा नहीं हो सका। दूसरी ओर विपक्षी दल महा विकास अघाड़ी में न केवल एक दूसरे को मतों का स्थानतरण हुआ बल्कि शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस और एनसीपी के बीच समन्वय भी रहा। इसका सबसे फायदा शिवसेना को हुआ। वहीं, इससे शिवसेना (यूबीटी) भाजपा के बराबर सीटें जीत गई और भाजपा को अपने दम पर जूझना पड़ा।