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आखिर बिहार में क्यों घट रहा है NOTA का ग्राफ, स्थिर सरकार की तरफ वोटर्स झुक रहे

By LSChunav | Oct 08, 2025

बिहार विधानसभा के चुनाव नवंबर में होने जा रहे हैं। चुनावों के लेकर बिहार में काफी तैयारियां हो रही है। अब आपको बताते हैं कि बिहार में नोटा के ग्राफ गिरावट क्यों आ रही है। बिहार विधानसभा चुनाव में नोटा (नन ऑफ द एबव) का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। बात करें 2025 में जहां 52 हजार 610 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाकर किसी भी प्रत्याशी को न चुनने का विकल्प अपनाया था, वहीं 2020 के चुनाव में यह आंकड़ा घटकर लगभग 29 हजार 848 सिमट गया। 
इस गिरावट को देखते हुए कहा जा सकता है कि मतदाताओं के राजनीतिक परिपक्वता और स्थिर सरकार की चाहत का स्पष्ट संकेत देती है। समस्तीपुर जिले में यही रुझान साफ-साफ देखने को मिल है। जिले के 10 विधायक क्षेत्रों में 2015 की तुलना में 2020 में नोटा दबाने वालों की संख्या घटी है, जबकि वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है।
2015 में सबसे अधिक नोटा का प्रयोग
बता दें कि, वारिसनगर विधानसभा में 2015 में सबसे अधिक 9551 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था। जबकि साल 2020 में घटकर 2632 पर पहुंच गया। वहीं 2020 में मोहिउद्दीनगर विधानसभा में मात्र 546 वोट नोटा को मिले, जो कि जिला में सबसे कम था। समस्तीपुर सीट की बात करें तो यहां पर नोटा का प्रयोग बढ़ गया है। 2015 में 1070 मतदाता ने नोटा का बटन दबाया था, वहीं 2020 में यह संख्या बढ़कर 1837 तक पहुंची है।
माना जाता है कि शहरी क्षेत्र मतदाता ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं और वे शासन की स्थिरता को समझते हैं। अब आकड़े की बात करें तो मतदाता नकारात्मक मतदान की बजाए स्पष्ट स्थिर सरकार की दिशा में अपना रुझान दिखा सकते हैं।
हसनपुर विधानसभा सीट पर 2015 में सबसे ज्यादा पड़ा था नोटा
बिहार में चुनाव आयोगन साल 2015 में नोटा का प्रयोग किया था। तब मतदाताओं में इसके लेकर काफी क्रेज था। बता दे कि, समस्तीपुर जिले में हसनपुर विधानसभा में सबसे ज्यादा नोटा का प्रयोग किया गया था। उस दौरान सबसे अधिक 7471 मतदाता ने नोटा का बटन दबाया था।
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