बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के खिलाफ 14 अगस्त तक "प्रकाशनों या सोशल मीडिया मंचों पर" "अपमानजनक और गलत बयानबाजी" करने पर रोक लगाने वाले एकल पीठ के आदेश के खिलाफ शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने तर्क दिया कि "उचित आलोचना" मानहानि नहीं है और यह आदेश उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर पूरी तरह से अंकुश लगाता है।
ममता बनर्जी ने कहा- अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता प्रभाव पड़ा
ममता ने कहा कि न्यायमूर्ति कृष्ण राव द्वारा पूर्व-परीक्षण चरण में पारित आदेश के "गंभीर परिणाम" थे और यह एक "गैग ऑर्डर" था, जिसका व्यक्तिगत रूप से और एक सार्वजनिक प्रतिनिधि के रूप में उनकी अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता पर "ठंडा प्रभाव" पड़ा।
बनर्जी ने तर्क दिया कि "यदि आदेश को जारी रहने दिया जाता है, तो इसका प्रभाव व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पड़ेगा"। उन्होंने कहा कि उनके बयान "न केवल सत्य थे, बल्कि विभिन्न महिलाओं की चिंताओं का मात्र दोहराव थे, जो उनके ध्यान में लाई गई थीं"। उन्होंने कहा कि बोस के खिलाफ आरोप पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में थे।