बिहार की राजनीति में काफी हलचल मच रही है क्योंकि इस साल बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर बिहार में पारंपरिक राजनीति का हिस्सा बनेंगे या नहीं यह तो कोई नहीं बता सकता है। वैसे तो बिहार की जनता के लिए प्रशांत किशोर का नाम अब अनजाना नहीं रहा। गौरतलब है कि लालू, नीतीश और तेजस्वी को गांव व शहर के लोग चेहरा देख कर पहचान लेते हैं। लेकिन प्रशांत पहली बार रूबरू हुए हैं तो चेहरा शायद सभी लोग न पहचानें, पर नाम सभी जान गए हैं। इसका असर भी अब दिखने लगा है। प्रशांत भी सियासत में बढ़-चढ़कर आगे आ रहे है।
प्रशांत किशोर किसके लिए खतरा बन रहे हैं
अब यह सावल उठ रहा है कि प्रशांत किशोर जिस तरह से राजनीति में आगे बढ़ रहे है। उसी तरह लग रहा है कि प्रशांत सबसे अधिक खतरा नीतीश कुमार को नहीं, बल्कि बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी यादव के खतरा साबित हो सकते हैं। तेजस्वी यादव के CM बनने के सपने पर प्रशांत किशोर पानी फेर दें।
तेजस्वी के लिए चिराग भी खतरा
चिराग पासवान के आगे अब तेजस्वी कुछ भी नहीं है। पासवान को अपने पांच उम्मीदवारों को संसद तक पहुंचाने का श्रेय जाता है। सियासत में धैर्य और निष्ठा हमेशा असफल नहीं होती, बल्कि कई बार सफलता भी मिलती हैं। नरेंद्र मोदी के प्रति चिराग की निष्ठा और असीमित धैर्य दिखाने का सुफल भी चिराग को मिल गया है। अब वे मोदी के सहयोगी मंत्री बन गए हैं। लेकिन वे भी अनुभव और ओहदे में नीतीश से नीचे ही माने जाएंगे। यानी चिराग भी तेजस्वी के लिए खतरा ही हैं।
नीतीश से भी है खतरा
नीतीश कुमार लालू के साथ जब मन करता है मौके-बेमौके छोटे-बड़े भाई की भूमिका में हो जाते है। साल 2015 हो या 2022 का साल, जब लालू यादव के बच्चों के लिए नीतीश कभी नेहरू जी से भी बड़े चाचा बन जाते हैं तो कभी नो एंट्री का बोर्ड भतीजे उनके लिए लगा देते हैं। वहीं, राबड़ी देवी भी भाभी-देवर के मधुर रिश्ते निभाने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ती । दोनों भाइयों का ठिकाना करीब होने के बावजूद 2005 से 2013 तक एक दूसरे के घर जाने की फुर्सत किसी को नहीं मिली। मिली भी होगी तो जाने पर खेल खराब होने का अंदेशा जो था। इस दौरान न नीतीश ने लालू के घर जाने की जरूरत समझी और न उन्हें भाईचारा निभाने की आवश्यकता महसूस हुई। असली ज्ञान मिला 2014 के विधानसभा उपचुनावों के बाद। दोनों के बीच दूरी मिट गई। मिलना जुलना आरंभ हो गया। पर, यह सिलसिला डेढ़ साल तक ही चल पाया। इसलिए कि दोनों करीब सिर्फ स्वार्थवश आए थे।