2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार विनोद कुमार सोनकर ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी शैलेन्द्र कुमार को मात दी थी। तब विनोद कुमार सोनकर को कुल 3, 31, 724 लाख मत मिले थे, जबकि शैलेन्द्र कुमार महज 2, 88, 824 लाख मत प्राप्त करके ही सिमट गए थे। सन 2008 में परिसीमन में इस संसदीय सीट को नया स्वरूप मिला। अब 5 विधानसभा क्षेत्र इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आते हैं। वह हैं- कुंडा, बाबागंज, मंझनपुर, चैल और सिराथू। खास बात यह है कि इन सभी 5 विधानसभा सीटों में से 3 पर भारतीय जनता पार्टी और 2 पर निर्दलीय नेताओं का ही कब्जा है, जिनमें से कुंडा सीट से बाहुबली राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भईया विधायक हैं। इनका राजनैतिक दखल इस सीट पर काफी है। बाबागंज विधान सभा सीट पर भी निर्दलीय प्रत्याशी ही काबिज है।
इस समय यूपी और केंद्र में भी भारतीय जनता पार्टी का ही शासन है, लेकिन सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से उसे कड़ी चुनौती कई जगहों की तरह इस सीट पर भी मिल रही है। हालांकि, चुनाव मैदान में कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवार की मौजूदगी से मुकाबला और अधिक रोचक हो चुका है। फिलवक्त, यहां किसकी जीत होगी और किसकी हार, यह अनुमान लगाना मुश्किल है।इस सीट के जातिगत समीकरणों की बात करें तो यहां पर भी दलित, पिछड़े और मुस्लिम मतदाता अच्छी खासी तादाद में हैं। यहां पर लगभग 21 प्रतिशत दलित और आदिवासी मतदाता हैं, जबकि लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता भी जीत हार तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।
यहां पर ओबीसी मतदाताओं की संख्या लगभग 35 प्रतिशत है, जिनमें यादव लगभग 8 फीसदी, कुर्मी लगभग 8 प्रतिशत और लगभग 19 प्रतिशत मतदाता अन्य पिछड़ी जातियों के हैं। इस प्रकार दलित, मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या यहां पर भी लगभग 60 फीसदी से अधिक है, जिससे सपा की जीत की संभावनाओं को बल मिलता है। शायद इसलिए भी कि बसपा का समर्थन भी उसे प्राप्त है। हालांकि सवर्णों में ब्राह्मण लगभग 10 प्रतिशत, क्षत्रिय 8 प्रतिशत, वैश्य लगभग 5 प्रतिशत और कायस्थ लगभग 1.5 प्रतिशत हैं, जिनके वोट भी यहां निर्णायक होते हैं और जीत-हार का फासला घटाते-बढ़ाते हैं।
जानकारों का कहना है कि मुस्लिम, यादव (ओबीसी) और दलित वोटरों की गोलबंदी यहां कांग्रेस के पक्ष में होगी या फिर सपा-बसपा गठबंधन के, यह यहां अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। लेकिन इनका कुछ हिस्सा बीजेपी को भी मिलेगा, यह तय है। हालांकि, बीजेपी की नजर गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव-चमार दलितों पर भी है। बीजेपी वर्मा कुर्मी और रावत पासी वोटों को अपने पाले में करने के लिए विकास, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और जातीय समीकरण तीनों का यहाँ भी सहारा ले रही है। अगर चुनाव आयोग के 2014 के आंकड़ों पर गौर करें तो इस सीट पर कुल 17 लाख 38 हजार 509 मतदाता हैं जिनमें से लगभग 9 लाख पुरुष और 8 लाख से अधिक महिलाएं हैं।
इस सीट पर मुख्यतः मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और सपा-बसपा-रालोद गठजोड़ के बीच ही होगा। 2014 के लोकसभा चुनावों में यहाँ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार शैलेन्द्र कुमार यहां दूसरे नंबर पर रहे थे। जबकि बसपा उम्मीदवार सुरेश कुमार पासी 2, 01, 322 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। तब कांग्रेस यहां भी चौथे स्थान पर ही रही थी। इस बार चूंकि यहां भी सपा-बसपा में गठबंधन है, इसलिए बीजेपी नेता यहां कांटे की लड़ाई में फंसते प्रतीत हो रहे हैं। उनके लिए खतरे की बात यह है कि 2014 में उन्हें एसपी और बीएसपी के उम्मीदवारों के संयुक्त मत से भी लगभग एक लाख 60 हजार वोट कम मिले थे, जिससे उनकी बेचैनी समझी जा सकती थी। साल 2019 के कौशांबी लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी विनोद सोनकर ने 38,722 मतों से चुनाव में जीत हासिल की। जबकि गठबंधन प्रत्याशी इंद्रजीत सरोज को 3,44,287 वोट प्राप्त हुए। वहीं जनसत्ता के शैलेंद्र कुमार को 1,56,406 वोट मिले। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश पासी 16,442 वोट प्राप्त कर तीसरे नंबर पर रहे।
उत्तरप्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में से एक कौशाम्बी संसदीय क्षेत्र पर इस समय भाजपा का कब्जा है। यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। भाजपा नेता विनोद कुमार सोनकर, कौशाम्बी संसदीय क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर इस संसदीय क्षेत्र की आबादी 15, 99, 596 लाख है। सन 2008 में आई निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों से ही यह नया संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में आया है। तब से यहां दो बार चुनाव हो चुके हैं और तीसरी बार हो रहे हैं। सन 2009 में जब इस सीट पर पहली बार चुनाव हुए तो समाजवादी पार्टी के नेता शैलेंद्र कुमार यहां से निर्वाचित हुए। वो पहले भी चायल संसदीय सीट से तीन बार सांसद रह चुके थे। मौजूदा सीट उसी सीट से निकलकर पुनर्गठित हुआ है।
हालांकि, सन 2014 में चली 'नमो लहर' के बाद हुए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के चलते बीजेपी नेता विनोद कुमार सोनकर की किस्मत यहां चमक उठी और वे लोकसभा पहुंचे। इससे पूर्व भी वह चायल संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। इस बार फिर ....