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Lok Sabha Elections: YRS कांग्रेस की आंधी में कैसी टिक पाएगी BJP-TDP, समझिए यहां के चुनावी समीकरण

By LSChunav | Mar 21, 2024

उत्तर की तरह ही दक्षिण में भी बीजेपी अनुकूल माहौल बनाने में जुटी है। वहीं तेलुगु देशम पार्टी के रूप में एक अनुभवी और अच्छा साथी मिलने से NDA के जान में जान आ गई है। वहीं पवन कल्याण की सेना पार्टी की ऊर्जा भी NDA के वोटों में वृद्धि कर सकती है। यह तीनों पार्टियां मिलकर YSR कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकती हैं। जिससे TDP की खिसकती जमीन को एक बार फिर आधार मिल सकता है। साल 2014 में प्रदेश के विभाजन ने राज्य की राजनीति को गहरे तरीके से प्रभावित किया है। वहीं जगन मोहन के उभार ने कांग्रेस का सफाया और TDP को कमजोर कर दिया है।

आपको बता दें कि राज्य में लोकसभा की 25 और राज्यसभा कि 175 सीटें हैं। वहीं लोकसभा और राज्यसभा साथ में कराए जाते हैं। जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में राज्य में पांच वर्षों से YSR कांग्रेस की सरकार है। विपक्ष की भूमिका TDP कर रही है। इस पार्टी का नेतृत्व चंद्रबाबू नायडू करते हैं। साल 2018 के पहले TDP भी NDA की घटक होती थी। लेकिन प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने की वजह से केंद्र पर वादाखिलाफी का आरोप लगाने हुए करीब 6 साल पहले TDP ने बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया था। 

संयुक्त आंध्र प्रदेश में बीजेपी की कहानी
साल 1998 से संयुक्त आंध्र प्रदेश में भाजपा की कहानी शुरू होती है। TDP से दोस्ती कर पहली बार संयुक्त आंध्र प्रदेश में चार सीटें जीती थीं और 18% वोट मिले थे। वहीं TDP के सहारे साल 1999 में बीजेपी ने 10% वोट शेयर के साथ 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। साल 2004 और 2009 में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। फिर साल 2014 में बीजेपी और टीडीपी मिलकर चुनाव लड़े और दोनों पार्टियों को सीट और वोट का लाभ मिला। इस दौरान बीजेपी के 3 सांसद और 9 विधायक जीतकर आए।

वर्तमान आंध्र प्रदेश के हिस्से में टीडीपी को 25 और बीजेपी को 2 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी और टीडीपी के अलग होने से दोनों ही पार्टियों को क्षति पहुंची थी। जहां टीडीपी 3 सीटों पर तो भाजपा का खाता तक नहीं खुल सका।

फीकी पड़ रही चंद्रबाबू की चमक
चंद्र बाबू नायडू का भी एक दौर रहा है और वह तीन बात प्रदेश के सीएम रह चुके हैं। सितंबर 1995 से मई 2004 तक उन्होंने लगातार 2 बार राज्य की सत्ता संभाली। फिर तेलंगाना राज्य बनने के बाद जून 2014 से मई 2019 तक चंद्रबाबू सीएम रहे। हांलाकि अब वह पहली की तरह प्रभावी नहीं रह गए। राज्य के विभाजन के बाद सिर्फ एक बार 2019 में चुनाव हुआ है। लेकिन इस दौरान चंद्रबाबू अपने प्रतिद्वंदी जगन मोहन के सामने टिक नहीं पाए। वहीं इस बार का चुनाव चंद्रबाबू के अस्तित्व से जुड़ा है। 

राज्य में कांग्रेस का दबदबा
प्रदेश में कभी टीडीपी और कांग्रेस का ही दबदबा था। आंध्र प्रदेश की सत्ता से टीडीपी के संस्थापक एनटी रामाराव ने कांग्रेस को पहली बार 1983 में बाहर किया था। NTR के दामाद चंद्रबाबू ने साल 1995 में टीडीपी का नेतृत्व संभाला था। फिर साल 2009 तक टीडीपी और कांग्रेस में मुकाबला होता रहा। लेकिन YRS कांग्रेस के गठन के साथ ही कांग्रेस निस्तेज होती गई। राज्य की राजनीति में करीब 6 दशकों तक प्रभावी रहने वाली कांग्रेस पार्टी को साल 2014 में विधानसभा की 21 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। 

वर्तमान समय में प्रदेश में न तो कांग्रेस के सांसद हैं और न ही कोई विधायक। वहीं पार्टी का वोट प्रतिशत 1.17% पर सिमट कर रह गया। हांलाकि जगन मोहन की छोटी बहन वाइएस शर्मिला अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर पार्टी को प्रदेश में संजीवनी देने में जुटी है।

जगन को रोकना नहीं है आसान
जगन मोहन के पिता राजशेखर कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। राजशेखर ने साल 2004 और 2009 में कांग्रेस को राज्य में सत्ता दिलाई थी। लेकिन 2009 में उनके निधन के बाद जगन की कांग्रेस में उपेक्षा होने के चलते उन्होंने 2011 में YRS कांग्रेस नाम से नई पार्टी बना ली। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सत्ता TDP को मिली थी। लेकिन जगन मोहन के प्रदर्शन से यह पूरी तरह से साफ हो गया था कि प्रदेश की राजनीति करवट लेने वाली है। जगन मोहन को पहले ही चुनाव में 28% वोट के साथ 70 विधानसभा सीटें मिल गई थीं और 9 लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी। 2019 के चुनाव में जगन मोहन के सभी विरोधी फीके पड़ गए थे। इस दौरान YRS कांग्रेस को 151 सीटों पर जीत मिली और लोकसभा में 22 सीटें प्राप्त हुईं।
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