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एक बार फिर से हिंदी विरोध की आग सुलग गई, एमके स्टालिन ने हिंदी कट्टरपंथियों पर निशाना साधा

By LSChunav | Mar 07, 2025

कर्नाटक के सीएम एमके स्टालिन हिंदी विरोध को लेकर आग झुलसा दी है। अब वह दूसरे राज्यों में भी पहुंचने लगी है। इस दौरान, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) को अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी बताने वाले आलोचकों पर पलटवार करते हुए कहा कि भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवाद नहीं बल्कि एक उचित मांग है। स्टालिन ने "हिंदी कट्टरपंथियों" पर तमिलनाडु को दूसरे दर्जे का नागरिक मानने और गैर-हिंदी भाषियों पर अपनी भाषा थोपने का आरोप लगाया।
अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का दिवस क्यों नहीं मनाया जाता?
भारत के तीन प्रमुख आपराधिक कानूनों, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नाम बदलने का जिक्र करते हुए स्टालिन ने 140 करोड़ नागरिकों पर शासन करने वाले कानूनों के नामकरण में तमिल और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल न करने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "अंधराष्ट्रवाद तीन आपराधिक कानूनों का नाम ऐसी भाषा में रखना है जिसे तमिल लोग बोल भी नहीं सकते या पढ़कर समझ भी नहीं सकते।" उन्होंने डीएमके की देशभक्ति पर सवाल उठाने वालों की भी आलोचना की और आरोप लगाया कि उनके आलोचकों के वैचारिक पूर्ववर्तियों ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया था। स्टालिन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि तमिलनाडु ने चीनी आक्रमण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और कारगिल युद्ध के दौरान सबसे अधिक धनराशि का योगदान दिया था, और डीएमके की राष्ट्रवादी प्रतिबद्धता के खिलाफ आरोपों को चुनौती दी।
हिंदी को जहर बताया
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए स्टालिन ने इसे "जहर" बताया जिसे तमिलनाडु स्वीकार करने से इनकार करता है। उन्होंने कहा, "किसी भी चीज को थोपने से दुश्मनी पैदा होती है। दुश्मनी एकता को खतरे में डालती है। इसलिए, असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी हिंदी के कट्टरपंथी हैं जो मानते हैं कि उनका हक स्वाभाविक है लेकिन हमारा विरोध देशद्रोह है।"
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