लद्दाख में पर्यावरणविद् और शिक्षाविद् सोनम वांगचुक के नेतृत्व में कई समूह अपनी संस्कृति, भूमि और पर्यावरण की रक्षा के लिए संवैधानिक उपायों की सरकार से मांग की जा रही है। बीते 24 मार्च को वांगचुक ने एक वेबिनार में सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि लद्दाख के साथ एक कॉलोनी (उपनिवेश) की तरह व्यवहार किया जा रहा है। जहां बाहर के नौकरशाह संवेदनशील क्षेत्र से संबंधित सभी नीतियों को कंट्रोल कर रहे हैं। इस समय वांगचुक अपनी मांगों को लेकर राज्य में 21 दिनों के अनशन पर हैं।
संरक्षण की उम्मीद
वांगचुक ने कहा कि जब जम्मू-कश्मीर लद्दाख से अलग हुआ तो स्थानीय लोगों को अपने जलवायु और यूनीक पर्यावरण के संरक्षण की उम्मीद लगाई। उन्होंने कहा कि सरकार ने तमाम बैठकों में इसका वादा किया था। सरकार द्वारा किए गए यह वादे, जनजातीय, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और कानून मंत्रालयों की बैठक तक सिमट कर रह गए।
सरकार पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप
वांगचुक ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को किए गए वादों की याद दिलाना अपराध बन गया है। वहीं विरोध करने पर लड़कों को उठाया जा रहा है और हिरासत में लिया जा रहा है। लेकिन अब यह पर्यावरण आंदोलन नहीं बल्कि सच्चाई और न्याय का मामला है। लेकिन सरकार अपने किए हुए वादों को पूरा नहीं कर रही है।
देश के लिए लद्दाख को बचाना महत्वपूर्ण
वांगचुक ने बताया कि हम सभी देख रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में क्या हो रहा है। वह सिर्फ इस इकोलॉजिकल आपदा को रोकना चाहते हैं। बता दें कि वह 21 दिनों से अनशन कर रहे हैं। जिसके बाद उनका एक गुट अनशन करेगा। वांगचुक ने बताया कि 10 दिनों तक महिलाएं अनशन करेंगी। इसके बाद भुक्षु, युवा और खाना बदोश। लद्दाख को बचाना देश के लिए काफी अहम है। क्योंकि एक तरफ पाकिस्तान है तो दूसरी तरफ चीन है। ऐसे में लद्दाख एक संवेदनशील क्षेत्र है।
वांगचुक ने सरकार से मांग की है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। जिसमें मेघालय, त्रिपुरा, असम और मिजोरम राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान है। इन क्षेत्रों के प्रशासन में यह स्थानीय समुदायों को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति देता है।