लोकसभा चुनाव का मुकाबला आंध्र प्रदेश में जोर पकड़ रहा है। आंध्र प्रदेश में असेंबली की 175 सीटों के लिए लोकसभा की 25 सीटों के साथ ही वोट पड़ेंगे। बता दें कि राज्य के सीएम जगन मोहन रेड्डी और पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू के बीच असली मुकाबला होगा। जबकि बीजेपी के दक्षिण विजय अभियान के तहत पीएम मोदी और भाजपा प्रदेश अपने पैर जमाने का प्रयास कर रही है। इसके तहत भाजपा ने राज्य में अपने पुराने घटक दल टीडीपी और अभिनेता से नेता बने तेलुगु चेहरे पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से हाथ मिलाते हुए प्रदेश में एनडीए गठबंधन के तहत राज्य में चुनाव लड़ने की योजना बनाई है।
वहीं अगर सीटों के तालमेल की बात की जाए, तो प्रदेश की कुल 25 सीटों में स 17 सीटों पर टीडीपी, 6 सीटों पर भाजपा और जनसेवा पार्टी 2 सीटों पर उतरेगी। वहीं पिछले दिनों में देश के प्रधानमंत्री ने राज्य में दौरा कर एक विशाल रैली की।
बड़े दलों को क्षेत्रीय दल का सहारा
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों को अपनी जगह बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों और चेहरों का सहारा लेना पड़ रहा है। क्योंकि पिछले चुनावों के आधार पर कांग्रेस और बीजेपी के पास जनाधार करीब एक-एक फीसदी है। साल 2014 में भाजपा और टीडीपी ने साथ मिलकर संयुक्त आंध्र प्रदेश की 42 सीटों के लिए गठबंधन में उतरी थी। टीडीपी ने 16, वाईएसआर कांग्रेस 9, भाजपा ने 3, बीआरएस ने 11, कांग्रेस ने 2 और AIMIM ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी। वहीं साल 2018 में प्रदेश को विदेश दर्जे की मांग को लेकर टीडीपी ने बीजेपी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए अपना रास्ता अलग कर लिया। हांलाकि YSR कांग्रेस संसद के अंदर NDA का हिस्सा न होते हुए भी अधिकतर मुद्दों पर सत्तारूढ़ दल के साथ दिखी।
YSR कांग्रेस
प्रदेश के मुख्यमंत्री और YSR कांग्रेस के मुखिया वाईआए जगन मोहन प्रदेश में अपनी कुर्सी बचाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने सरकार व सांसदों के प्रति एंटी इनकंबेंसी से निपटने के लिए जनकल्याण योजनाओं के साथ 27 मार्च से जनअभियान की शुरूआत की योजना बनाई है। यह यात्रा 21 दिन तक चलेगी। इसके अलावा सीएम जगन ने मौजूदा 22 सांसदों में 14 सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरे देने का प्रयास किया है।
टीडीपी और भाजपा
आंध्र प्रदेश में टीडीपी मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। पार्टी चीफ चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर प्रदेश में सत्ता पाने की कोशिश में हैं। इस वजह से चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा और जनसेना पार्टी से हाथ मिलाया है। टीडीपी राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी को शराब नीति और इंफ्रास्ट्क्चर विकास जैसे मुद्दों पर घेर रही है। भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी और डी पुरंदेश्वरी जैसे चेहरे चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।
यह उम्मीदवार प्रदेश के कापू और कम्मा समुदाय पर नजरें टिकाएं हैं। भाजपा को लगता है कि टीडीपी और जनसेवा पार्टी से हाथ मिलाने पर यह दोनों समुदाय साथ आ सकते हैं। क्योंकि नायडू कम्मा समुदाय से आते हैं जो पारंपरिक तौर से टीडीपी का समर्थन कर रहा है। राज्य में कप्पा समुदाय की आबादी 5% है। वहीं जनसेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण कापू समाज से आते हैं, समाज में इनकी आबादी 18% है।
कांग्रेस
करीब एक दशक पहले तक आंध्र प्रदेश कांग्रेस का गढ़ रहा था। ऐसे में अपने गढ़ को बचाने के लिए पार्टी ने वाई एस राजशेखर रेड्डी की विरासत को साथ लेने की कोशिश की है। कांग्रेस पिछले 10 सालों से प्रदेश में अपने जनाधार को खोती जा रही है। ऐसे में पार्टी ने वाईएस शर्मिला पर अपना दांव लगाया है उनके हाथों में राज्य की कमान सौंपी है। क्योंकि शर्मिला ने कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया है। आपको बता दें कि शर्मिला चंद्रबाबू नायडू के बाद अपने भाई जगन मोहन की सबसे बड़ी आलोचक और प्रतिद्वंदी बन चुकी हैं। अब वह लगातार जगन मोहन सरकार को लगातार घेर रही हैं।
कांग्रेस पार्टी की नजर प्रदेश में वहां के 9.5 फीसदी मुस्लिम वोटों और सात फीसदी क्रिश्चियन वोटों पर हैं। क्रिश्चियन मत पर विश्वास करने वाला वाईएस रेड्डी परिवार से आने के नाते जगन मोहन की नजर भी मुस्लिम औऱ क्रिश्चियन वोट बैंक पर है। लेकिन कांग्रेस को लगता है कि शर्मिका का साथ मिलने से मॉइनॉरिटी वोट बैंक का बंटवारा दोनों पार्टियों के बीच हो जाएगा।