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बिहार

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तीखे बयान

  • जनसंख्या: 63761796
  • पुरुष: 29668858
  • महिला: 34092938
  • लोकसभा सीटें: 40
  • राजधानी: पटना
  • चरण-1 (मतदान दर) : 50.00
  • चरण-2 (मतदान दर) : 62.00
  • चरण-3 (मतदान दर) : 59.97
  • चरण-4 (मतदान दर) : 59.02
  • चरण-5 (मतदान दर) : 57.76
  • चरण-6 (मतदान दर) : 59.29
  • चरण-7 (मतदान दर) : 53.36

बिहार की 'सरकारें'

आजादी के बाद से 1989 तक बिहार में कांग्रेस पार्टी का ही शासन रहा। आपातकाल के समय थोड़े दिनों के लिए यहां भी सत्ता परिवर्तन हुआ था जब कर्पूरी ठाकुर CM बने थे जिन्होंने दलित और पिछड़े समाज के लिए आवाज़ उठायी थी। बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह थे जिन्हें यहां का गांधी भी कहा जाता है। छात्र आंदोलन से उपजे नेताओं ने यहां से कांग्रेस की छुट्टी की। 1990 में जनता दल के लालू यादव CM बने और तभी से बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ। 2005 में लालू के सत्ता से बेदखल होने के बाद यहां की सियासत की बागडोर वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों में रही। इस दौरान भी बिहार की राजनीति ने कई करवटें लीं। सियासत के दांवपेंच के बीच राबड़ी देबी, जीतनराम मांझी के हाथों में भी राज्य की सत्ता व्यवस्था गई। बिहार में नगर निगम, नगर पालिका और पंचायत के चुनाव फिलहाल पार्टी चिह्न पर नहीं होते।

किस पार्टी का कितना दम

बिहार में जहाँ 243 विधानसभा सीटें हैं वहीं 40 लोकसभा सीटें और 16 राज्यसभा सीटें हैं। फिलहाल लोकसभा में भाजपा के पास 22 हैं। इसके अलावा LJP 6, RLSP 3, JDU 2, RJD 4, कांग्रेस 2 और NCP के पास एक सीट है। वहीं राज्यसभा में भाजपा के पास 4, JDU के पास 6, RJD के पास 4 और कांग्रेस के पास एक सीट है। पिछले लोकसभा चुनाव में 22 सीटें जीतने के बाद यहां भाजपा का दबदबा बढ़ा है। हालांकि विधानसभा चुनावों में भाजपा वह प्रदर्शन दोहरा नहीं पायी और महागठबंधन से परास्त हो गई। वर्तमान में बिहार की राजनीति में JDU, RJD के अलावा भाजपा और लोजपा का गणित फिट बैठ रहा है। कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है और उसे वहां RJD के सहारे ही अपना राजनीतिक भविष्य तलासना पड़ता है।

वर्तमान राजनीतिक स्थिति

बिहार के राजनीतिक दलों की वर्तमान में स्थिति पर गौर करें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व वाला NDA मजबूत नजर आता है और कांग्रेस तथा राजद का गठबंधन अच्छी टक्कर देने की क्षमता रखता है। JDU की कमान स्वयं नीतीश ने अपने हाथों में रखी है तो BJP ने लालू यादव के जातीय समीकरण में सेंध लगाने की कोशिश में राज्य इकाई की कमान नित्यानंद राय को सौंपी है। लालू जेल में होने के बावजूद भी अपना प्रभाव रखते हैं। RJD की कमान उन्हीं के परिवार के पास है। लोजपा रामविलास पासवान की पार्टी है और अभी इसके कर्ता-धर्ता उनके पुत्र चिराग पासवान हैं। कांग्रेस बिहार की लड़ाई में तो नहीं है पर उसके वोट RJD के लिए अहम साबित होते हैं। RJD जहां MY (यादव-मुस्लिम) समीकरण के साथ आगे बढ़ रही है तो वहीं कांग्रेस सवर्णों को साधने में जुटी है। इन सबके अलावा जीतनराम मांझी की HAM औऱ उपेंद्र कुशवाहा की RLSP अभी भी इधर-उधर के दांव-पेंच के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है।

सामाजिक समीकरण

वैसे तो 1990 के पहले के बिहार की राजनीति में सवर्णों का दबदबा रहा है। कांग्रेस के पतन के साथ ही यह दबदबा खत्म हो गया। लालू के सत्ता में आते ही OBC के अलावा SC-ST समुदाय के लोगों को साधने की कोशिश शुरू हो गई। बिहार में OBC/EBC के 51 फीसदी वोट हैं जिसमें यादव-14.4%, कुशवाहा- 6.4% और कुर्मी 4% शामिल हैं। महादलित और दलित 16 फीसदी हैं जिसमें दुसाद 4% और मुसहर 2.8% हैं। मुसलमान वोट 17 फीसदी के लगभग है। सवर्णों का वोट 17 % है जिसमें भूमिहार 5 %, ब्राह्मण 6 %, राजपूत 5.2% और कायस्थ 1.5 % शामिल हैं। उच्च वर्ग और OBC का कुछ हिस्सा NDA के साथ है तो RJD गठबंधन को मुसलमान और यादवों का साथ मिलता रहता है। SC-ST की बात करें तो ये जिधर जाते हैं उस पार्टी का दबदबा बढ़ जाता है। यही कारण है कि रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी जैसे दलित नेता हर गठबंधन के लिए जरूरी हो जाते हैं।

प्रमुख चुनावी मुद्दे

कृषि प्रधान इस राज्य में रोजगार बड़ा मुद्दा है। राज्य लगातार बाढ़ और सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहता है पर किसानों तक किसी प्रकार की राहत नहीं पहुंच पाती। सिंचाई के नाम पर अभी यहां कुछ भी नहीं है। इसके अलावा इस राज्य से लोगों का पलायन लगातार जारी है। सड़क, बिजली और पानी के क्षेत्र में काम तो हुए हैं पर लोगों की उम्मीदों के अनुरूप नहीं। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में अभी बहुत कमी है। राज्य में स्वास्थ्य समस्याएं बहुत हैं और सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है जहां पैसों के बगैर आम जनता के काम नहीं होते। शिक्षा के क्षेत्र में राज्य लगातार पिछड़ता जा रहा है और यहां की शिक्षा व्यवस्था की आलोचना भी खूब होती है। प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार की आवश्यकता है। राज्य के कई जिले नक्सली समस्या की चपेट में हैं तो कई जिलों में अवैध खनन और रेत की लूट परेशानी का सबब बनी हुई है। राज्य में कानून व्यवस्था लगातार गिरती जा रही है और अपराधी बेखौफ नज़र आने लगे हैं। महिला सुरक्षा भी बड़ी चुनौती है। राज्य में शराबबंदी तो है पर इसकी अवैध खरीद लगातार जारी है। इसके आलावा देसी दारू का चलन भी बढ़ गया है। आने वाले चुनाव में यहां महँगाई भी बड़ा मुद्दा रहने वाला है।

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भारत के पूर्वी क्षेत्र में स्थित बिहार जनसंख्या के हिसाब से देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। राजनीतिक रूप से देख जाए तो यह राज्य हमेशा आगे की पंक्तियों में रहता है। कहते हैं केंद्र की राजनीति बिहार के बिना अधूरी है क्योंकि वहां की सत्ता निर्धारण यहीं से होता है। बिहार की राजधानी पटना है और यह राज्य पटना, तिरहुत, सारण, दरभंगा, कोशी, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर तथा मगध प्रमंडल के अन्तर्गत बंटा हुआ है। राज्य में 38 जिले हैं जिन्हें 101 अनुमंडल, 534 प्रखंड अंचल और 8,471 पंचायत बांटा गया है।

ऐतिहासिक बिहार

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो बिहार का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। बिहार को पहले मगध के रूप में जाता जाता था जिसका सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है वहीं ऋग्वेद में बिहार को 'कीकट' कहा गया है। भारत के पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में बिहार का खूब जिक्र मिलाता है। रामायण में मां सीता को मिथिला का बताया गया है और आज भी मिथिलांचल क्षेत्र भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। यहाँ की धरती पर ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी कि....

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