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क्या असम में बीजेपी को मात दे पाएगा कांग्रेस का महागठबंधन?

By LSChunav | Feb 23, 2021

साल 2021 असम के लिए बहुत महत्वपूर्ण होने वाला है। असम में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए विपक्षी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। असम में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), भाकपा, माकपा, भाकपा माले और आंचलिक गण मोर्चा के साथ महागठबंधन किया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस महागठबंधन से कॉन्ग्रेस असम में सत्ताधारी बीजेपी को मात दे पाएगी?
 गौरतलब है कि असम में कॉन्ग्रेस काफी लंबे समय तक सत्ता में रही है। लेकिन 2016 के चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के हाथों मात खानी पड़ी थी। तब से असम में बीजेपी और भी ज्यादा मजबूत हो गई है और असम के साथ-साथ पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी बीजेपी अपनी पहुंच मजबूत करने में सफल रही है। असम चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण गठबंधन कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच है। एआईयूडीएफ वही पार्टी है जिसके बारे में कभी कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने कहा था की एआईयूडीएफ सांप्रदायिक सांप्रदायिक पार्टी है और वह बीजेपी की टीम बी है। ऐसे में कांग्रेस को एआईयूडीएफ से हाथ क्यों मिलाना पड़ रहा है? दरअसल बदरुद्दीन अजमल की पार्टी असम में बंगाली मुस्लिमों को अपनी ओर खींचा है और वहां अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। ऐसे में एआईयूडीएफ के साथ मिलकर कॉन्ग्रेस असम में बंगाली मुस्लिमों का वोट पा सकती है।
 बंगाल में  लंबे समय तक इलीगल माइग्रेंट्स डिटरमिनेशन बाय ट्रिब्यूनल एक्ट 1983 पर विवाद था। इस कानून के बारे में असम के लोगों को शिकायत थी कि यह असम में बंगाली भाषा अवैध प्रवासियों को सुरक्षा प्रदान करता है। जब जुलाई 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को रद्द कर दिया था तब बदरुद्दीन अजमल नाम का एक इत्र का कारोबारी अपनी एक पार्टी बनाता है, जिसका नाम है - असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ). बदरुद्दीन का कहना था कि यह पार्टी उन सभी लोगों की है जिन्हें असम में बाहरी बता कर अत्याचार किया गया है.
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  वहीं, बीजेपी भी असम में चुनाव जीतने के लिए जोरों शोरों से तैयारियों में जुटी है। हाल ही में पार्टी ने अपने 5 साल पुराने गठबंधन नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस असेंबली का पुनर्गठन किया है। 2016 में बीजेपी एजीपी बीपीएस और अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी। असम की 126 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 60 सीटें जीतने में सफल हुई थी। जबकि असम गण परिषद ने 14 और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने 12 सीटें जीती थी। वहीं, कांग्रेस को 23 और एआईयूडीएफ को 14 सीटें मिली थी। बीजेपी ने असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन अब बीजेपी ने दोनों क्षेत्रीय पार्टियों असम गण परिषद और बोडो पीपल फ्रेंड का साथ छोड़ दिया है। अपनी रणनीति के तहत बीजेपी बोडो पीपल फ्रंट को हटाने के बाद वह दो बहुल इलाकों में अपने उम्मीदवार उतार सकती है। बीजेपी ने एक क्षेत्रीय दल यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल के साथ गठबंधन भी किया है, जो हाल ही में हुए बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद चुनाव में दूसरे नंबर पर रही है।
 असम चुनाव में कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ तंज कसेगी। उनमें से एक मुद्दा सीएए का। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा दिसंबर 2019 में पास किया गया था। इस कानून में अफगानिस्तान बांग्लादेश और पाकिस्तान के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात कही गई थी। लेकिन असम में इस कानून का जमकर विरोध हुआ था। दिसंबर 2019 में जब इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन किया गया था तो पुलिस फायरिंग में 5 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। अब असम में चुनाव होने जा रहे हैं तो सीए के खिलाफ आवाज उठ रही है और यही वजह है कि कांग्रेस ने सीए को अपना प्रमुख एजेंडा बना लिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि अगर असम में उनकी पार्टी सरकार में आई तो सीएए लागू नहीं होगा। असम में एक प्रमुख मुद्दा अवैध प्रवासियों का भी रहा है इस मुद्दे पर 1985 में असम अकॉर्ड भी हुआ था। जिसमें अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें राज्य से बाहर निकालने की मांग की गई थी। लेकिन यह समस्या आज भी बनी हुई है। केंद्र सरकार ने यह दावा किया था कि सीएए कानून के जरिए घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा लेकिन असल में इस कानून को लेकर ही विरोध है। असम में सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों को लेकर आम जनता के बीच बीजेपी खिलाफ नाराजगी है। ऐसे में देखना यह होगा कि क्या कांग्रेस इन मुद्दों को सामने लाकर बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में कामयाब रहेगी या नहीं?
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