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सन 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालजी टण्डन को यहां से टिकट दिया, जो चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। लेकिन सन 2014 में बीजेपी ने अपने वरिष्ठ नेता और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को गाजियाबाद से हटाकर यहां से मौका दिया जिन्होंने तब तक के सभी बीजेपी उम्मीदवारों से अधिक वोट लेकर चुनाव जीते और उनकी पार्टी बीजेपी का प्रदर्शन पूरे देश में शानदार रहा। इसलिए केंद्र में मोदी सरकार गठित हुई और पार्टी में नम्बर दो के नेता की हैसियत से उन्हें देश का गृहमंत्री बनाया गया। 

सन 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर वे बीजेपी की ओर से चुनाव मैदान में हैं, जहां कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद और सपा प्रत्याशी पूनम सिंहा को जीत के लिए नाकोचने चबाने पर मजबूर कर दिया है।यह संसदीय क्षेत्र इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि इसका नेतृत्व तेजतर्रार राष्ट्रवादी नेता अटलबिहारी बाजपेयी, समाजवादी नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा और कांग्रेस नेत्री शीला कौल और विजय लक्ष्मी पंडित जैसे दिग्गज राजनेताओं ने किया है।

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी को मात दी थी। तब राजनाथ सिंह को कुल 5, 61, 106 लाख मत मिले थे, जबकि रीता बहुगुणा जोशी महज 2, 88, 357 लाख मत ही प्राप्त कर सकी थीं। 2008 में परिसीमन के बाद इस संसदीय सीट का स्वरूप बदल गया। अब 5 विधानसभा क्षेत्र इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आते हैं। वह हैं- लखनऊ पूर्व, लखनऊ पश्चिम, लखनऊ मध्य, लखनऊ उत्तर और लखनऊ कैंट। खास बात यह है कि इन सभी 5 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। इस समय यूपी और केंद्र में भी भारतीय जनता पार्टी का ही शासन है। 

इस सीट के जातिगत समीकरणों की बात करें तो यहां पर 77 प्रतिशत हिन्दू और 21 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। यहां पर 9.61 प्रतिशत दलित और 0.02 प्रतिशत आदिवासी मतदाता हैं। हिंदुओं में ब्राह्मण और वैश्य वर्ग का यहां वर्चस्व है। यहां 10 प्रतिशत कायस्थ मतदाता हैं जिनमें 4 प्रतिशत सिंधी मतदाता भी शामिल हैं। मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटरों की गोलबंदी यहां कांग्रेस के पक्ष में होगी या सपा-बसपा गठबंधन के, यह यहां स्पष्ट नहीं है, लेकिन इनका कुछ बीजेपी को भी मिलेगा, यह तय है। अगर चुनाव आयोग के 2014 के आंकड़ों पर गौर करें तो इस सीट पर कुल 19 लाख 49 हजार 596 मतदाता हैं जिनमें से 10 लाख से अधिक पुरुष और लगभग 9 लाख महिलाएं हैं।

इस सीट पर मुख्यतः मुकाबला पहले कांग्रेस बनाम समाजवादी दल, और अब भाजपा बनाम कांग्रेस के बीच ही होता आया है। 2014 के लोकसभा चुनावों में यहाँ कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी यहां दूसरे नंबर पर रही थीं। जबकि बसपा उम्मीदवार निखिल दूबे 64, 449 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। बता दें कि पाकिस्तान पर हुए एयर सर्जिकल स्ट्राइक और म्यांमार में हुई सर्जिकल स्ट्राइक ने यहां राष्ट्रवादी भावनाएं मजबूत हुई हैं जो आठवीं बार बीजेपी की लहर पैदा कर चुकी है। पहले चाय और अब चौकीदार की चुनावी रणनीति की चुनौती का सामना करने में कांग्रेस हांफ रही है। निःसन्देह, कांग्रेस की इस परंपरागत सीट पर राष्ट्रवादी दल जिस तरह से लगातार अपना सियासी खम्म ठोके हुए है, वह उसकी राजनीतिक दूरदर्शिता का ही तकाजा करार दिया जा सकता है। 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में बड़े से बड़े दिग्गजों की चमक को फीका करने का काम किया है। बताया जाता है कि लखनऊ से चुनाव हारने वाले नेताओं के आगे की राजनीति ही खत्म हो जाती है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के सामने सपा से अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा चुनाव मैदान में उतरी थीं। लेकिन पूनम सिन्हा को बीजेपी प्रत्याशी राजनाथ सिंह से 3,40,000 वोटों से करारी शिकस्त मिली थी। कांग्रेस से आचार्य प्रमोद कृष्णनन 1,80,011 वोटों से तीसरे स्थान पर रहे।


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उत्तरप्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में से एक लखनऊ संसदीय क्षेत्र पर इस समय भाजपा का कब्जा है। दिग्गज भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, लखनऊ संसदीय क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। यह एक हाई प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र है, जहां से पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी 5 बार निर्वाचित हुए थे। उनसे पहले इस सीट पर पूर्व प्रधानमंत्रियों- जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के रिश्तेदार भी कई दफे चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा भी इस सीट से संसद पहुंच चुके हैं। एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह फिलवक्त यहां का प्रतिनिधित्व करते हुए चुनाव मैदान में हैं। 2011 की जनगणना के आधार पर यदि देखें तो इस संसदीय क्षेत्र की आबादी 23,95,147 लाख है। सन 1952 से ही यह संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में है। 

सन 1952 में जब इस प्रतिष्ठित सीट पर पहली बार चुनाव हुए तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेत्री श्योराजवती नेहरू यहां से निर्वाचित हुईं। फिर जब 1953 में यहां उपचुनाव हुए तो कांग्रेस ने....

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