परिसीमन के बाद सुपौल लोकसभा सीट वर्ष 2009 में स्वतंत्र रूप से वजूद में आई। इससे पहले सहरसा जिला भी सुपौल लोकसभा क्षेत्र में शामिल था, जो नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बन गया। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती हैं।
निर्मली
पिपरा
सुपौल
त्रिवेणीगंज
छातापुर
2009 के चुनाव में यहां से जदयू के विश्व मोहन कुमार सांसद बने। 2009 के चुनाव में रंजीत रंजन ने सुपौल सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन तब रंजीत रंजन जदयू के विश्व मोहन कुमार से डेढ लाख वोटों से हार गई थीं। साल 2014 में इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 15 लाख 25 हजार 592 थीं, जिसमें से मात्र 9 लाख 70 हजार 528 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया जिसमें पुरुषों की संख्या 4 लाख 68 हजार 183 थी तो वहीं महिलाओं की संख्या 5 लाख 2 हजार 345 रही।
जेडीयू के दिलेश्वर कामैत ने सुपौल लोकसभा क्षेत्र में 2,66,853 वोटों के अंतर से कांग्रेस के रंजीत रंजन को हराया था। दिलेश्वर कामैत को 5,97,377 वोट मिले थे। जद (यू) के दिलेश्वर कामैत सुपौल निर्वाचन क्षेत्र के निवर्तमान सांसद हैं। सुपौल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बिहार के आसपास के क्षेत्र में आता है। सुपौल लोकसभा क्षेत्र में त्रिवेणीगंज (एससी), निर्मली, सुपौल, छातापुर, सिंघेश्वर (एससी), पिपरा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 65.69% मतदान हुआ था। इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल 21 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।
बिहार की सुपौल लोकसभा सीट से इस वक्त कांग्रेस पार्टी की तेज तर्रार नेत्री व पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन सांसद हैं। उन्होंने इस सीट पर साल 2014 में जदयू के नेता दिलेश्वर कमैत को 59 हजार 672 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। रंजीत रंजन को 3 लाख 32 हजार 925 वोट मिले थे तो वहीं दूसरे नंबर पर रहे जदयू नेता दिलेश्वर कमैत 2 लाख 73 हजार 255 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। सुपौल लोकगायिका शारदा सिन्हा और स्व. पंडित ललित नारायण मिश्र की धरती के नाम से भी काफी प्रसिद्ध है। सुपौल में धान, गेहूं, मूंग, पटसन आदि की पैदावार बहुत अच्छी होती है। सुपौल में कांग्रेस हमेशा से मैथिली ब्राह्मणों की पसंदीदा पार्टी रही है। उसे पूर्व केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र और डॉ. जगन्नाथ मिश्र की छवि का लाभ मिलता रहा है। हालांकि यादव जाति की आबादी भी अच्छी है। वैसे सुपौल और आसपास के इलाके में 'पचपनिया' के नाम से पहचान रखने वाली अतिपिछडी जातियां भी हार-जीत में अहम भूमिका निभाती आई है।
परिसीमन के बाद सुपौल लोकसभा सीट वर्ष 2009 में स्वतंत्र रूप से वजूद में आई। इससे पहले ....